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मुद्दा | भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाने वाले ग्रेट इंडियन बस्टर्ड क्यों विलुप्ति की कगार पर पहुंचे?

Duration: 09:32Views: 6.2KLikes: 492Date Created: Mar, 2022

Channel: Down To Earth

Category: Science & Technology

Tags: gibsanctuaryhealth mobilitycivil service preparationsindiaias coachingmuddasustainable developmentgreat indian bustardrenewable energyenvironmentextinctioncsepower linesdown to earthscienceonly found in indiathreatened speciesupsccentre for science and environmentrajasthan

Description: मुद्दा के इस एपिसोड में आज हम बात करेंगे एक ऐसे पक्षी की जो विलुप्ति की कगार पर है। इस अनोखे पक्षी का नाम है ग्रेट इंडियन बस्टर्ड यानी जीआईबी। राजस्थान में इसे गोडावन कहते हैं। हमारे देश में करीब 100 गोडावन ही बचे हैं। मशहूर पक्षी विज्ञानी डॉ सलीम अली इसे राष्ट्रीय पक्षी बनाना चाहते थे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं, और मोर को राष्ट्रीय पक्षी का दर्जा दे दिया गया। गोडावन भारतीय उपमहाद्वीप का मूल निवासी है। दुनिया के किसी और हिस्से में यह नहीं पाया जाता। तो आखिर क्या वजह है कि आज यह पक्षी विलुप्ति का सामना कर रहा है? गोडावन लंबे पैर और लंबी गर्दन वाले पक्षी हैं। इनकी हाइट 1.2 मीटर या 4 फीट तक तक पहुंच सकती हैं। इनका वजन 15 किलो तक हो सकता है। यह पक्षी सूखे घास के मैदानों में बसेरा करते हैं। 90 फीसदी गोडावन का आवास राजस्थान तक ही सीमित है। भारत के अलावा पाकिस्तान में भी कुछ संख्या में इन्हें देखा जा सकता है। अगर ये हमारे देश से विलुप्त हो जाते हैं, तो गोडावन का अस्तित्व पूरे विश्व से हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा। इस प्रजाति को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ यानी आईयूसीएन रेड लिस्ट में गंभीर रूप से लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. अब सवाल है कि गोडावन पर विलुप्ति का खतरा क्यों मंडरा रहा है? उनीस सौ उनहत्तर में लगभग 1,260 की आबादी वाला यह पक्षी 5 दशकों में 100 की संख्या तक क्यों सिमट गया? पिछले कुछ वर्षों में शिकार, प्राकृतिक आवास खत्म होने और बिजली के झटके से इसकी आबादी में तेजी से गिरावट आई है। जानकारों के मुताबिक, राजस्थान के सेकरेड ग्रूव्स या पवित्र वनों में सौर और पवन ऊर्जा पार्क की स्थापना से गोडावन की जनसंख्या में तेजी से कमी आ रही है। कुछ दशक पहले तक गोडावन राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में पाये जाते थे । लेकिन अब उनकी आबादी राजस्थान तक ही सीमित है। 2018 में गणना के अनुसार, देश में केवल 150 गोडावन थे और उनमें से 122 जैसलमेर में थे। जानकारों का कहना है कि पिछले 4 सालों में इनकी जनसंख्या में और गिरावट आई है। अक्षय ऊर्जा कंपनियों और स्थानीय लोगों के बीच एक संघर्ष चल रहा है। लोग चाहते हैं कि ये कंपनियां गोडावन के आवास को छोड़ दें और कहीं और सौर और पवन ऊर्जा पार्कों का निर्माण करें। जंगली जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन यानी सीआईटीईएस के परिशिष्ट -1 के अनुसार, भारत में यह वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम 2002 की अनुसूची 1 के तहत संरक्षित है। हालांकि, मानव निर्मित और प्राकृतिक खतरे अभी भी मौजूद हैं जिससे इनकी जनसंख्या में तेजी से गिरावट आई है। गोडावन के अस्तित्व पर संकट देख पर्यावरणविद् डॉ एमके रंजीत सिंह ने 2015 में सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से मांग की कि ये पावर कंपनियां अपने सोलर और विंड फार्म गोडावन के हैबिटैट में न बनाकर कहीं और स्थापित करें। अप्रैल 2021 में शीर्ष अदालत ने राजस्थान में बिजली कंपनियों को आदेश दिया कि वे परियोजनाओं की तारों को जमीन के अंदर बिछाएं और मौजूदा लाइनों पर डायवर्टर स्थापित करें। जब बिजली कंपनियां इस आदेश का पालन करने में विफल रहीं, तो अक्टूबर 2021 में एमके रंजीत सिंह और अन्य पर्यावरणविदों ने शीर्ष अदालत में एक और याचिका दायर की। इसमें कहा गया कि बिजली कंपनियां अप्रैल के आदेश का उल्लंघन कर रही हैं और क्षेत्र में ओवरहेड बिजली लाइनों को बिछाने का काम जारी है। इस फैसले के जवाब में, केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय का कहना था कि अक्षय ऊर्जा परियोजना के तारों को अगर भूमिगत किया गया तो इसकी लागत में चार से 20 गुना वृद्धि हो जाएगी। हालांकि एमके रंजीत सिंह का कहना है कि दिल्ली समेत कई राज्यों के साथ-साथ अन्य देशों में भी भूमिगत तारें बिछाई गई हैं। वो कहते हैं कि अगर बिजली कंपनियां अपने कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी फंड का 2 फीसदी हिस्सा भी इस्तेमाल कर लें तो वे अतिरिक्त खर्चों को आसानी से पूरा कर लेंगी। विशेषज्ञ बस्टर्ड के आवास को नष्ट किए बिना नवीकरणीय ऊर्जा के तहत क्षेत्र को बढ़ाने के विकल्प भी सुझाते हैं।अशोका ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकॉलोजी एंड एनवायरमेंट यानी एटीआरईई में अबी टी वनक ने सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए घास के मैदान को साफ करने के बजाय एग्रीवोल्टिक्स के उपयोग का प्रस्ताव रखा। यह खेती के साथ सौर पैनल लगाने का तरीका है। सौर पैनलों की छाया में छांव में होने वाली फसल लगा सकते हैं। वाष्पीकरण कम होने की वजह से पानी की खपत भी कम होगी। इन सबके बीच सरकार गोडावन को विलुप्त होने से बचाने की कोशिश कर रही है। जून 2019 में, राजस्थान के वन विभाग ने भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून के साथ मिलकर डेजर्ट नेशनल पार्क में एक ब्रीडिंग सेंटर शुरू किया। लेकिन गोडावन की प्रजनन दर काफी धीमा है। मादा पक्षी हर साल केवल एक अंडा देती है, वह भी जमीन पर। अंडों को कई बार मवेशी नष्ट कर देते हैं। अक्सर अंडे को बड़े जानवर खा भी जाते हैं। खेती के दौरान ट्रैक्टर और अन्य मशीनों से भी अंडा नष्ट हो सकता है। ब्रीडिंग सेंटर इन अंडों को जंगल से एकत्र करता है और संरक्षित परिस्थितियों में उनसे चूजा निकालता है। ब्रीडिंग सेंटर में तीन वर्षों में 16 गोडावन चूजों को संरक्षित किया गया है। हालांकि स्थानीय लोगों ने चूजों को जंगल में छोड़ने पर चिंता व्यक्त की है। एक तरफ गोडावन जैसे अनोखे पक्षी के विलुप्त होने का खतरा है तो दूसरी तरफ देश का साल 2030 तक 500 गीगावाट स्वच्छ ऊर्जा का महत्वाकांक्षी लक्ष्य है। दोनों में से किसी एक को चुनना मुश्किल है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर बीच का क्या रास्ता अपनाया जाए कि गोडावन का संरक्षण और अक्षय ऊर्जा का लक्ष्य, दोनों ही पूरा हो।

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